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ramdevra mandir jaisalmer rajasthan| सभी धर्म और संप्रदाय के आराध्य देव श्री बाबा रामदेव जी का मंदिर

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Ramdevra Mandir Jaisalmer  रामदेवरा मंदिर जैसलमेर  राजस्थान

(ramdevra) भारतवर्ष विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहां हमारे देश में विभिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय के लोग हैं और बहुत सी चीजें हैं जो इन भिन्न-भिन्न धर्म, जाति और संप्रदाय के लोगों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती हैं। इसी कड़ी में शामिल है राजस्थान जैसलमेर के एक प्रसिद्ध लोक देवता बाबा रामदेव जी (ramdevra mandir jaisalmer)। तो चलिए जानते हैं बाबा रामदेव जी का जीवन परिचय और इस प्रसिद्ध स्थल के बारे में।

 

बाबा रामदेव जी का इतिहास (ramdevra mandir jaisalmer)

 

  • बाबा रामदेव जी का जन्म  “उंडूकासमेर” गांव में हुआ था जोकि शिव तहसील में और बाड़मेर जिले में पड़ता है।
  • इनके पिता तवरवंश के थे जिनका नाम अजमाल जी था, माता का नाम मेंणादेवी था और इनके एक भाई भी थे जिनका नाम वीरमदेव था।
  • आगे चलकर इन्होंने अपना निवास जैसलमेर जिले के पोकरण के पास स्थित “रुणिचा” गांव को बनाया।
  • एक प्रसिद्ध किंवदंती के अनुसार इन्होंने अपने बचपन में ही पोकरण के पास सातलमेर स्थान पर भैरव नामक एक क्रूर राक्षस का वध किया था।
  • बाबा रामदेव जी के गुरु का नाम बाली नाथ जी महाराज था जिनसे उन्होंने शिक्षा दीक्षा ग्रहण की।
  • इनका विवाह नेतलदे जिन्हें निहालदे भी कहा जाता है से हुआ था और ये अमरकोट जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है के दल्ले सिंह की पुत्री थी।
  • बाबा रामदेव जी को सबसे ज्यादा जिस वजह से याद किया जाता है वह है इनके द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना और कुप्रथाओ का विरोध करना। इन्होंने जाती-पाती, छुआछूत, ऊंच-नीच का विरोध कर हिंदू मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम की है।
  • बाबा रामदेव जी की एक गोद ली हुई बहन भी थी जिनका नाम है डाली बाई।
  • बाबा रामदेव जी एक राजपूत राजा थे लेकिन उन्होंने अपना भौतिकवादी जीवन त्याग कर अपने आप को पूरी तरह से मानव जाति के उत्थान और सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत से अच्छे कार्य किए जो कि उस समय के परिपेक्ष में देखा जाए तो बहुत ही मुश्किल थे जैसे छुआछूत का विरोध करना, जाति प्रथा और इसी तरह के अन्य भेदभाव को ना मानना, हिंदू मुस्लिम एकता की बात करना और सबको साथ लेकर चलना बिना किसी भेदभाव के। यही वजह है कि बाबा रामदेव जी को हिंदू-मुस्लिम और सभी जाति और संप्रदाय के लोग पूरी श्रद्धा के साथ मानते और पूजते हैं।

रामदेवरा मेला (ramdevra mandir jaisalmer)

रुणिचा रामदेवरा में बाबा रामदेव जी का समाधि स्थल है और एक प्रसिद्ध तथा विशाल मंदिर है जहां भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से एकादशी तक एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर  जिले में स्थित है और यह मंदिर ना केवल जैसलमेर में बल्कि पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। यह मंदिर जैसलमेर मार्ग पर स्थित है और पोकरण से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां मेले के दौरान भक्तों की भारी भीड़ रहती है। मेले में न सिर्फ राजस्थान से ही बल्कि यहां पर पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात से भी भारी संख्या में हिंदू और मुसलमान भक्त इनके दर्शन के लिए आते हैं।
रामदेवरा में मंदिर परिसर के पास ही स्थित रामसर तालाब प्रमुख आकर्षण है। ऐसा माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से शारीरिक रोग और कष्ट दूर होते हैं
रामदेव जी का मेला लगभग एक महीने चलता है और मेले के दौरान श्रद्धालु भजन कीर्तन गाते हैं, ढोल नगाड़े बजाते हैं और रामदेव जी का जो प्रतीक है ध्वजा पताका उसे लहराते हैं। इसके अलावा यहां का प्रसिद्ध “तेरहताली नृत्य” भी मेले का प्रमुख आकर्षण है।

बाबा रामदेव जी के बारे में अन्य विशेष (ramdevra mandir jaisalmer)

बाबा रामदेव जी के रामदेवरा के अलावा भी अन्य मंदिर हैं जैसे कि जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर, बिराटिया अजमेर, और सुरता खेड़ा चित्तौड़गढ़ में भी मंदिर है।
बाबा रामदेव जी को हिंदू और मुसलमान समान रूप से मानते हैं और पूजा अर्चना करते हैं इसलिए इनको “रामसा पीर” के नाम से भी जाना जाता है।

रामदेवरा में बाबा रामदेव जी का भव्य मेला भरता है और इस मेले में जो सबसे अधिक आकर्षण होता है वह है “तेरहताली नृत्य”।

बाबा रामदेव जी का एक मंदिर गुजरात में भी है इसे “छोटा रामदेवरा” के नाम से जाना जाता है।
रामदेव जी ने एक पंथ की भी स्थापना की थी जिसे “कामड़िया पंथ” कहा जाता है।
बाबा रामदेव जी के जन्म की तिथि या अवतार की तिथि हिंदी वर्ष के हिसाब से भाद्रपद शुक्ल द्वितीय है जिसे राजस्थान में “बाबे री बीज” या “बाबे री दूज” के नाम से पुकारा जाता है।
बाबा रामदेव जी के जितने भी मंदिर हैं उन्हें “देवरा” कहा जाता है और इन मंदिरों पर एक सफेद रंग की या पांच अलग-अलग रंगों की ध्वजा फहराई जाती है जिसे स्थानीय भाषा में “नेजा” कहा जाता है। रामदेव जी लोक देवता के साथ-साथ एक कवि भी थे और इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध कृति है “चौबीस बाणिया”।
रामदेव जी ने अपने जीवन काल में बहुत से चमत्कार किए। इन चमत्कार को स्थानीय भाषा में “पर्चा” कहा जाता है

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