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Khatu Shyam Ji । खाटू श्याम जी ! कहानी एक ऐसे महान योद्धा की, जिन्होंने अपना शीश काटकर दान कर दिया था।

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( Khatu Shyam Ji ) खाटू श्याम जी मंदिर सीकर राजस्थान

 

खाटू श्याम जी महाराज, जिनके बारे में मान्यता है कि ‘ जिनकी कोई नहीं सुनता उनकी खाटू श्याम जी महाराज सुनते हैं ‘ और इनके बारे में एक प्रसिद्ध सूक्ति है ” हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा “ इसका मतलब है कि जो व्यक्ति अपनी जिंदगी में परेशानियों से हार चुका है, पूरी तरह से टूट चुका है और जिसे कहीं कोई सहारा नहीं है, वह खाटू श्याम जी के दरबार में अपनी परेशानियों को रखता है और खाटू श्याम जी उनकी अवश्य ही मदद करते हैं। तो आइए जानते हैं आज के लेख में खाटू श्याम जी के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं।

Khatu Shyam Ji

खाटू श्याम जी महाराज की अनसुनी कहानी

श्री खाटू श्याम बाबा ( Khatu Shyam Ji ) महाभारत काल में बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी थी। नव दुर्गा की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये । इसलिए खाटू श्याम जी को तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अग्निदेव से इन्होंने धनुष प्राप्त किया था ।

जब बर्बरीक को पता चला कि कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया है, तब बर्बरीक ने युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। बर्बरीक ने अपनी मां को इस बारे में बताया तो मां ने उनसे वचन लिया कि वे हारे हुए पक्ष का साथ देंगे। इसके बाद वे अपनी मां से आशीर्वाद लेकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की तरफ अपने नीले घोड़े पर सवार होकर निकल पड़े।

श्री कृष्ण जो सर्वव्यापी थे, उनको इस बारे में पता था कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो युद्ध के परिणाम क्या हो सकते हैं, इसलिए श्री कृष्ण ने ऋषि का भेष बनाया और रास्ते में उन्होंने बर्बरीक को रोक लिया। उन्होंने बर्बरीक का मजाक उड़ाया की वह तीन बाण लेकर युद्ध में शामिल होने चले आए। बर्बरीक ने कहा कि उनका एक बाण ही पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता है और पूरी विपक्षी सेना का संपूर्ण नाश कर सकता है। उन्होंने कहा कि अगर वे अपने तीनों बाण का इस्तेमाल करेंगे तो संपूर्ण ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा।

इसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी, कि अगर उनके पास इतने ही शक्तिशाली बाण हैं, तो यह सामने जो पीपल का वृक्ष है इसके सारे पत्तों को वेधकर दिखाएं। बर्बरीक में अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर का स्मरण कर पीपल के वृक्ष की तरफ चला दिया। पल भर में ही बाण ने सारे पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा रखा था। बर्बरीक ने हाथ जोड़कर श्री कृष्ण से कहा कि आप अपना पैर हटा लीजिए वरना यह बाण आपके पैर को वेध कर आपके पैर के नीचे रखे पत्ते को वेध देगा।

श्री कृष्ण ने इसके बाद बर्बरीक से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में किस पक्ष का साथ देगा। बर्बरीक ने कहा कि जो भी निर्बल और कमजोर पक्ष होगा, जो हारने वाला पक्ष होगा वह उसी का साथ देगा। श्री कृष्ण अच्छी तरह से जानते थे कि महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार निश्चित है। और अगर बर्बरीक कौरवों के पक्ष में युद्ध करते हैं, तो वह कुछ ही पलों में युद्ध के परिणाम पलट कर रख देंगे।।

इसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने श्री कृष्ण को वचन दिया कि वे दान में जो भी मांगेंगे वह उसे पूरा करेगा। श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसके शीश का दान मांगा। बर्बरीक यह सुनकर एक पल के लिए अचंभित हुए, लेकिन बर्बरीक एक महान योद्धा और बहादुर व्यक्ति थे। वे अपने शीश का दान देने के लिए तैयार हो गए। बर्बरीक ने शीश की बलि देने से पहले यह जानना चाहा कि आखिरकार श्रीकृष्ण ने उनसे शीश की बलि क्यों मांगी। श्री कृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप में आए और उन्होंने कहा की महाभारत जैसे धर्म युद्ध से पहले युद्ध भूमि पूजन के लिए एक ऐसे व्यक्ति की बलि देना आवश्यक था जो तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ योद्धा हो। बर्बरीक चाहते थे कि वह महाभारत का संपूर्ण युद्ध अपनी आंखों से देखें और इसके लिए उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की।

श्री कृष्ण ने बर्बरीक की प्रार्थना स्वीकार की और जब बर्बरीक ने अपने शीश की बलि दी, तब बर्बरीक के शीश को एक ऐसी ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहां से संपूर्ण युद्ध देखा जा सके। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि दी । बर्बरीक को इसी कारण से शीश के दानी के नाम से जाना जाता है।

जब महाभारत के युद्ध की समाप्ति हुई तो इस बात पर बहस हो रही थी कि युद्ध विजय का श्रेय किसको जाता है। तब श्री कृष्ण ने कहा कि संपूर्ण युद्ध को बर्बरीक ने अपनी आंखों से देखा है, इसलिए उनसे पूछा जाए कि इस युद्ध में विजय का श्रेय किसे देना चाहिए।

जब बर्बरीक से पूछा गया कि इस युद्ध में विजय दिलाने में सर्वाधिक योगदान किसका रहा, तब बर्बरीक ने कहा कि यह संपूर्ण युद्ध श्री कृष्ण का युद्ध था। इस संपूर्ण युद्ध में श्री कृष्ण की युद्ध नीति, श्री कृष्ण की उपस्थिति, श्री कृष्ण की शिक्षा, श्री कृष्ण का ज्ञान ही युद्ध में विजय का कारण रहा। श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि कलयुग में सब तुम्हें श्याम के नाम से जानेंगे।

बर्बरीक के शीश को खाटू नगर जो कि वर्तमान में राजस्थान राज्य के सीकर जिले में स्थित है, दफनाया गया इसलिए बर्बरीक को खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है।

मान्यताओं के अनुसार जिस स्थान पर बर्बरीक का शीश दबा हुआ था वहां एक गाय रोज आकर अपने स्तनों से दूध की धारा प्रवाहित करती थी । जब उस स्थान की खुदाई की गई तो वहां से बर्बरीक का शीश प्रकट हुआ और खाटू नगर के राजा को मंदिर के निर्माण और उस मंदिर में बर्बरीक के शीश को स्थापित करने का स्वप्न आया।

इसके बाद खाटू नगर में एक मंदिर बनाया गया और वहां पर बर्बरीक के शीश को कार्तिक माह की एकादशी को सुशोभित किया गया।

खाटू श्याम जी का बचपन का नाम बर्बरीक था। इसके बाद श्री कृष्ण ने उन्हें श्याम नाम दिया, जिस नाम से यह प्रसिद्ध है। इसके अलावा इन्हें तीन बाण धारी, लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोरवी नंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धनी, कलयुग का अवतार, दीनो का नाथ आदि उपनामों से जाना जाता है।

खाटू श्याम जी ( Khatu Shyam Ji ) के मंदिर तक कैसे पहुंचे ?

 

खाटू श्याम जी का मंदिर जयपुर शहर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और फ्लाइट से पहुंचने के लिए सबसे पास का एयरपोर्ट, जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जिसकी दूरी खाटू श्याम मंदिर से लगभग 95 किलोमीटर है।

जयपुर शहर से खाटू श्याम जी की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है । खाटू श्याम जी पहुंचने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन रींगस है, जहां से मंदिर की दूरी लगभग 18.5 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी, जीप और बस निरंतर चलती रहती है।

खाटू श्याम जी मंदिर तक आप अपने निजी साधन से भी आ सकते हैं। दिल्ली से खाटू श्यामजी तक पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे का समय लगता है।

खाटू श्याम जी( Khatu Shyam Ji ) मंदिर जाने का सही समय कौन सा है ?

 

खाटू श्याम जी के दरबार में जाने के लिए कोई विशेष समय तय नहीं है। साल के 12 महीनों में कभी भी खाटू श्याम जी के दर्शन हेतु जाया जा सकता है। लेकिन विशेष तौर पर अगस्त से लेकर मार्च तक का समय खाटू श्याम जी के मंदिर में जाने के लिए सही रहता है, क्योंकि इस समय पर अधिकांशत: दर्शनार्थी खाटू श्याम जी के दर्शन हेतु आते हैं और विशेष तौर पर कृष्ण जन्माष्टमी के समय लाखों की संख्या में दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए खाटू श्याम मंदिर में पहुंचते हैं।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को खाटू श्याम जी महाराज का जन्मोत्सव मनाया जाता है और इस समय पर बहुत अधिक संख्या में लोग यहां इकट्ठा होते हैं।

होली के समय फाल्गुन के महीने में खाटू श्याम जी मंदिर परिसर में खाटू फाल्गुन मेला भरता है, जिसे देखने के लिए यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

श्याम कुंड और श्याम बाग

खाटू धाम पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्शनीय स्थलों में श्याम कुंड और श्याम बाग प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। प्राचीन पुराणों के अनुसार जिस जगह पर खाटू श्याम जी का शीश अवतरित हुआ था उस स्थान को वर्तमान में श्याम कुंड के नाम से संबोधित करते हैं और ऐसा माना जाता है कि जो भी इस कुंड में स्नान करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। श्याम कुंड में स्नान करने के लिए पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा ना हो।

खाटू श्याम ( Khatu Shyam Ji ) मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार

जब श्रद्धालु और भक्त गण खाटू धाम पर पहुंचते हैं, तो मंदिर परिसर से पहले ही मुख्य प्रवेश द्वार आता है । इस पर प्राचीन चित्रकारी दर्शाई गई है और यह प्रवेश द्वार देखने में काफी सुंदर प्रतीत होता है।

खाटू श्याम जी( Khatu Shyam Ji )मंदिर के खुलने और बंद होने का समय।

खाटू श्याम जी के दर्शन दो चरणों में होते हैं ।

सुबह 6:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और शाम को 4:00 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक।

खाटू श्याम जी( Khatu Shyam Ji )की आरती का समय

खाटू श्याम जी के मंदिर में अलग-अलग चरणों में खाटू श्याम जी की आरती होती है।

आरती की शुरुआत मंगला आरती से होती है, जिसका समय सर्दियों में सुबह 5:30 और गर्मियों में आरती का समय सुबह 4:30 का है।

इसके बाद शृंगार आरती होती है। इसका समय सर्दियों में सुबह 8:00 बजे का है और गर्मियों में सुबह 7:00 बजे का है।

इसके बाद भोग आरती होती है। भोग आरती का समय सर्दियों में दोपहर 12:30 बजे का है और गर्मियों में 1:30 बजे का है।

शाम को संध्या आरती होती है। संध्या आरती का समय सर्दियों में शाम 6:30 बजे का है और गर्मियों में शाम 7:30 बजे का है।

रात को शयन आरती होती हैं। शयन आरती का समय सर्दियों में रात्रि 9:00 बजे का है और गर्मियों में रात्रि 10:00 बजे का है।

खाटू श्याम में ठहरने के लिए होटल

खाटू श्याम जी के मंदिर परिसर के पास ठहरने के लिए बहुत सारी होटल है, जिनमें से कुछ प्रमुख होटलों की जानकारी यहां उपलब्ध कराई जा रही है।

राधे की हवेली

लखदातार होटल

श्याम होटल

नटराज होटल

होटल मोरबी

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खाटू श्याम जी( Khatu Shyam Ji ) के पास स्थित अन्य दर्शनीय स्थल

रींगस के भैरू जी

सालासर बालाजी मंदिर

खाटू श्याम जी ( Khatu Shyam Ji ) का नक्शा ।

 

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